Satyanarayan Vrat Katha प्रथम अध्याय
नैमिषारण्य में अनेक ऋषि-मुनि एकत्र होकर सूत जी से बोले –
“हे सूत जी! हमें ऐसा उपाय बताइए जिससे मनुष्य के सारे दुख दूर हों और जीवन में सुख-समृद्धि प्राप्त हो।”
सूत जी ने कहा –
“हे मुनियों! आपने बड़ा उत्तम प्रश्न किया है। एक समय नारद जी ने भी यही प्रश्न भगवान विष्णु से किया था। वही कथा मैं आपको सुनाता हूं।”
नारद जी जब पृथ्वी पर घूम रहे थे, तब उन्होंने देखा कि लोग अनेक प्रकार के दुखों से पीड़ित हैं। यह देखकर उनका हृदय करुणा से भर गया। वे सीधे वैकुण्ठ धाम पहुंचे और भगवान विष्णु से बोले –
“प्रभु! पृथ्वी पर जीव बहुत कष्ट झेल रहे हैं। कृपया कोई सरल उपाय बताइए जिससे उनके दुःख दूर हो सकें।”
भगवान विष्णु ने उत्तर दिया –
“हे नारद! जो भी व्यक्ति श्रद्धा से श्री सत्यनारायण भगवान का व्रत करेगा, उसके दुख दूर हो जाएंगे। यह व्रत विशेष रूप से पूर्णिमा को करना चाहिए। केले के पत्ते पर कलश स्थापित कर, गेहूं का चूरमा, घी, शक्कर, दूध और केले का भोग लगाना चाहिए। ब्राह्मणों को भोजन कराना और कथा श्रवण करना आवश्यक है।”
Shri Satyanarayan Vrat Story द्वितीय अध्याय
काशीपुर में एक गरीब ब्राह्मण भिक्षा मांगकर जीवन यापन करता था। एक दिन भगवान सत्यनारायण वृद्ध ब्राह्मण के रूप में उसके पास आए और पूछा –
“हे विप्र! तुम इतने चिंतित क्यों हो?”
ब्राह्मण ने दुखी होकर कहा –
“महाराज! मैं अत्यंत निर्धन हूं। भिक्षा से जो मिलता है, उसी से परिवार चलता है।”
वृद्ध रूपी भगवान बोले –
“तुम सत्यनारायण भगवान का व्रत करो, तुम्हारी सभी इच्छाएं पूरी होंगी।”
यह कहकर वे अंतर्धान हो गए।
ब्राह्मण ने व्रत किया और शीघ्र ही उसे धन की प्राप्ति हुई। वह हर महीने व्रत करने लगा। एक दिन उसकी पत्नी ने कहा –
“हमारे कोई संतान नहीं है। यदि सत्यनारायण भगवान की कृपा से संतान हो, तो हम विशेष पूजा करेंगे।”
कुछ समय बाद उनके घर कन्या जन्म हुआ, जिसका नाम रखा गया रूपवती। जब रूपवती बड़ी हुई, तो उसका विवाह एक योग्य युवक से कर दिया गया।
Satyanarayan Bhagwan Ki Katha तृतीय अध्याय
एक साहूकार था जिसका नाम था लक्ष्मीदास। उसकी पत्नी का नाम था लीलावती। वे दोनों नदी किनारे Satyanarayan Vrat Katha कर रहे थे। तभी एक लकड़हारा आया और बोला –
“आप लोग क्या कर रहे हैं?”
साहूकार ने कहा –
“हम सत्यनारायण भगवान का व्रत कर रहे हैं। इससे सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।” लकड़हारे ने पूछा की सत्यनारायण व्रत कैसे करें – How to do Satyanarayan Vrat. तब साहूकार ने सत्यनारायण व्रत का महत्व – Importance of Satyanarayan Vrat लकड़हारे को बताया और लकड़हारा प्रसाद लेकर घर चला गया .
लकड़हारे ने मन ही मन संकल्प किया –
“जब मुझे धन मिलेगा, तब मैं भी यह व्रत करूंगा।”
अगले ही दिन उसकी लकड़ियां दुगुने दाम में बिकने लगीं। उसने धन कमाया और अपने परिवार के साथ व्रत किया। वह सुखी हो गया।
कुछ समय बाद साहूकार के घर कन्या का जन्म हुआ। उसका नाम भी कलावती रखा गया। जब वह विवाह योग्य हुई, तो उसका विवाह व्यापारी के पुत्र शंखपति से हुआ। विवाह के बाद दामाद व्यापार के लिए विदेश चला गया।
सत्यनारायण की कथा चतुर्थ अध्याय
साहूकार और उसका दामाद व्यापार करते-करते रत्नसार नगर पहुंचे। वहां राजा चंद्रकेतु की पुत्री का स्वयंवर हो रहा था। तभी एक चोर ने राजकुमारी का हार चुराया और भागते समय वह हार साहूकार के पास गिरा दिया।
राजा के सैनिकों ने साहूकार और दामाद को पकड़ लिया और कारागार में डाल दिया।
घर पर लीलावती और कलावती अत्यंत दुखी थीं। एक दिन लीलावती सत्यनारायण व्रत कथा कर रही थी। कलावती बोली –
“माता! मैं छत पर जाकर देखती हूं कि पिताजी आ रहे हैं या नहीं।”
उसी समय भगवान की कृपा से राजा को सच्चाई का पता चल गया। राजा ने साहूकार और दामाद को मुक्त कर दिया और धन देकर विदा किया।
जब वे घर लौट रहे थे, तो साहूकार ने दूत भेजा। दूत ने कहा –
“साहूकार जी आ रहे हैं।”
कलावती खुशी से दौड़ी, लेकिन प्रसाद लिए बिना ही पति से मिलने चली गई। इससे भगवान अप्रसन्न हो गए और उनकी नाव डूबने लगी।
साहूकार ने समझ लिया कि यह भगवान का कोप है। उन्होंने प्रार्थना की। तभी आकाशवाणी हुई –
“तुम्हारी पुत्री ने प्रसाद का अनादर किया है। जब तक वह प्रसाद ग्रहण नहीं करेगी, संकट दूर नहीं होगा।”
कलावती ने तुरंत प्रसाद खाया। नाव बच गई और वे सभी सुरक्षित घर लौट आए।
सत्यनारायण की कथा पंचम अध्याय
एक बार राजा तुंगध्वज शिकार खेलते हुए जंगल में भटक गए। उन्हें प्यास लगी। तालाब किनारे कुछ ग्वाले सत्यनारायण कथा कर रहे थे। राजा ने घमंड में आकर उस पूजा की अवहेलना की।
जब वे नगर लौटे, शत्रुओं ने आक्रमण कर दिया और उनका सब कुछ छिन गया। वे फिर से जंगल में भटकने लगे।
तब राजा को अपनी भूल का एहसास हुआ। उन्होंने ग्वालों से क्षमा मांगी और व्रत किया। भगवान की कृपा से उनका राज्य वापस मिल गया। तब से वे नियमित रूप से व्रत करने लगे।
इसी प्रकार राजा अंगध्वज को संतान नहीं थी। उन्होंने व्रत किया और पुत्र प्राप्त हुआ। लेकिन राजा वंशध्वज ने अहंकार में व्रत का अनादर किया, जिससे उसका विनाश हो गया। बाद में जब उसने पश्चाताप कर व्रत किया, तो उसे सब कुछ पुनः मिल गया।
समापन
सूत जी बोले –
सूत जी ने कहा – “हे मुनियों! जो भी व्यक्ति श्रद्धा और भक्ति से सत्यनारायण भगवान का व्रत करता है, उसके सारे दुख दूर हो जाते हैं। उसे धन, संतान, आरोग्य और अंत में मोक्ष की प्राप्ति होती है।”
“यह व्रत करते समय निम्न नियमों का पालन करना चाहिए:
- पूर्णिमा या संक्रांति के दिन व्रत करें
- स्वच्छ स्थान पर मंडप बनाएं
- कलश स्थापना करें
- षोडशोपचार पूजा करें
- पंच मेवा, पंचामृत और चूरमे का भोग लगाएं
- कथा श्रवण करें
- आरती करें
- प्रसाद वितरण करें”
“जो व्यक्ति इस कथा को सुनता है या सुनाता है, उसे अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। घर में सुख-शांति बनी रहती है। व्यापार में वृद्धि होती है। संतान सुखी रहती है।”
सभी ने जयकार किया – “सत्यनारायण भगवान की जय! सत्य ही नारायण है, नारायण ही सत्य है।”